मेंहदीपुर बालाजी

राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाडियों के बीच मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर बसा हुआ है। यहां आपको कई विचित्र नजारे देखने को मिल जाएंगे, जिन्‍हें पहली बार देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं और डर भी जाते हैं। विज्ञान भूत-प्रेतों को नहीं मानता है लेकिन यहां हर दिन दूर-दराज से ऊपरी चक्कर और प्रेत बाधा से परेशान लोग मुक्ति के लिए आते हैं। भूत-प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में बालाजी, जो कि हनुमानजी का बाल रूप है, उनकी मूर्ति है।

प्रेतराज सरकार

यहां हर दिन 2 बजे प्रेतराज सरकार के दरबार में पेशी यानी की कीर्तन होता है, जिसमें लोगों पर आए ऊपरी सायों को दूर किया जाता है। मंदिर के किसी भी तरह के प्रसाद को आप खा नहीं सकते और ना ही किसी को दे सकते हैं। यहां के प्रसाद को आप घर पर भी नहीं लेकर जा सकते। यहां तक की कोई भी खाने-पीने की चीज और सुंगधित चीज आप यहां से घर नहीं लेकर जा सकते। बताया जाता है ऐसा करने पर ऊपरी साया आपके ऊपर आ जाती है। यहां बाकी मंदिरों से अलग प्रसाद चढ़ता है।

सावित्री मंदिर

यहां पर ब्रह्माजी को पुष्कर में शाप देने के बाद देवी सावित्री जिन्हें देवी सरस्वती भी कहते हैं वह रूठकर पर्वत पर जाकर बस गईं। मंदिर के बारे में प्रचलित मान्यता है कि पुरुष इस मंदिर में बाहर से ही देवी के दर्शन कर सकते हैं। पुरुषों का अंदर प्रवेश करना वर्जित है। इसकी वजह यह मानते हैं कि देवी पुरुषों से नाराज हैं। इन्होंने विष्णु भगवान को भी ब्रह्माजी की गायत्री से विवाह का साक्षी होने के वजह से पत्नी से वियोग का शाप दे दिया था।

किराडू मंदिर

इसे ‘राजस्‍थान का खजुराहो’ भी कहा जाता है। लेकिन इस मंदिर में अगर कोई भी शाम के बाद रुका तो कभी लौटकर नहीं आया। कहा जाता है कि किराडू पर एक साधू का शाप है। इस कथानक के अनुसार एक बार एक साधु अपने शिष्‍यों के साथ इस शहर में आए। कुछ दिन रहने के बाद साधु देश भ्रमण पर निकले। इसी दौरान अचानक ही उनके शिष्‍य बीमार पड़ गए, लेकिन गांव के लोगों ने उनकी देखभाल नहीं की। लेकिन उसी गांव में एक कुम्‍हारिन थी। जिसने उन शिष्‍यों की देखभाल की थी। ऐसे में जब साधु वापस पहुंचे और अपने शिष्‍यों को इस हालत में देखा तो उन्‍हें काफी दु:ख हुआ और उन्‍होंने वहां के लोगों को शाप दिया कि जहां मानवता नहीं है वहां लोगों को भी नहीं रहना चाहिए। उनके शाप देते ही सभी पाषाण के हो गए।

पुष्‍कर टेंपल

ब्रह्मा जी इस संसार के पालनहार हैं लेकिन देखने वाली बात यह है कि हमारे देश में हर एक देवी-देवता के कई सारे मंदिर हैं मगर ब्रह्मा जी का पूरे भारत में सिर्फ एक ही मंदिर है जो कि राजस्थान के पुष्कर में स्‍थ‍ित है। इसके पीछे एक बहुत रोचक कथा है। पद्म पुराण में ऐसा वर्णन मिलता है कि ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री ने उन्‍हें श्राप दिया था कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी। पुष्कर जैसा ब्रह्मा जी का पौराणिक मंदिर पूरे व‍िश्‍व में कहीं नहीं मिलेगा।

तनोट माता

पााकिस्तान का बार्डर स्थित है। जैसलमेर के थार रेगिस्तान में 120 किलोमीटर दूर है तनोट माता का मंदिर है। मंदिर के साथ भारत-पाकिस्तान युद्ध की एक किवदंती जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि 1971 के युद्ध के दौरान भारतीय सीमा में 4 किलोमीटर तक घुस आई पाकिस्तानी सेना इस मंदिर को पार नहीं कर पाई थी और उसके द्वारा बरसाए गए गोले भी इस मंदिर पर बेअसर रहे थे।

करणी माता मंदिर

माता करणी मंदिर अद्भुत है। इसे चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यहां भक्‍तों को चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद खिलाया जाता है। मां करणी को मां दुर्गा का अवतार माना गया है। साल 1387 में एक चारण परिवार में करणी माता का जन्‍म हुआ। इनका बचपन का नाम रिघुबाई था। विवाह के बाद जब उनका मन सांसरिक जीवन से ऊब गया तो उन्‍होंने अपना पूरा जीवन देवी की पूजा और लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया गया। 151 वर्ष तक जीवित रहने के बाद वह ज्‍योर्तिलीन हो गईं। 

मां भुवाल काली माता मंदिर

यहां माता ढाई प्याला शराब ग्रहण करती हैं। साथ ही बचे हुए प्याले की शराब को भैरव पर चढ़ाया जाता है। इस मंदिर का निर्माण डाकूओं ने करवाया था। शिलालेख से पता चलता है कि मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1380 को हुआ था। मंदिर के चारों और देवी-देवताओं की सुंदर प्रतिमाएं व कारीगरी की गई है। मंदिर के ऊपरी भाग में गुप्त कक्ष बनाया गया था, जिसे गुफा भी कहा जाता है। यहां माता काली व ब्राह्मणी दो स्वरूप में पूजी जाती हैं। मंदिर में आने वाले भक्तजन ब्रह्माणी देवी को मिठाई और काली को शराब का भोग चढ़ाते हैं।