राजस्थान के 33वें जिले मालवा अंचल के प्रतापगढ़ जिले की विशिष्ट ‘थेवा कला’ आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब नाम कमा रही है.
Dot
Dot
प्रतापगढ़ में हरे रंग को आधार बनाकर काँच की वस्तुओं पर सोने का कलात्मक चित्रांकन थेवा कला कहलाती है।
लगभग 400 वर्ष पूर्व देवगढ़ (प्रतापगढ़) में इस कला का जन्म हुआ। इसके प्रवर्तक कलाकार नाथूजी सोनी थे।
लगभग 400 वर्ष पूर्व देवगढ़ (प्रतापगढ़) में इस कला का जन्म हुआ। 'थेवा' नाम की उत्पत्ति इस कला के निर्माण की दो मुख्य प्रक्रियाओं 'थारना' और 'वाड़ा' से मिल कर हुई है।
प्रवर्तक कलाकार नाथूजी सोनी थे।
इस कला में हरे, लाल, नीले, पीले काँच पर सोने का काम, चाँदी की रेखाएँ उभारना, चित्र व आकृतियाँ बनाना आदि कार्य किया जाता है।
यह कला राजसोनी परिवार की धरोहर है, जिसे सोनी परिवार ने ट्रेड सिक्रेट रखा है।
महेश सोनी, रामप्रसाद सोनी, रामविलास सोनी, बेनीराम, जगदीश थेवा कला के राज्य एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कलाकार है।
विशेष प्रकार की कला होने के कारण इसका उल्लेख ‘एनसायक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका’ में भी हुआ है
विशेष प्रकार की कला होने के कारण इसका उल्लेख ‘एनसायक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका’ में भी हुआ है
इस कला में पहले कांच पर सोने की शीट लगाकर उस पर बारीक जाली बनाई जाती है, जिसे 'थारणा' कहा जाता है.
कांच को कसने के लिए चांदी के बारीक तार से फ्रेम बनाया जाता है, जिसे 'वाडा' बोला जाता है.
उसके बाद इसे तेज आग में तपाया जाता है. जिसके बाद शीशे पर सोने की कलाकृति और खूबसूरत डिजाइन उभर कर एक नायाब और लाजवाब आकृति का रूप ले लेती है