राजस्थान के मंदिर की एक अलग ही विशेषता है। राजस्थान बहुत ही धार्मिक और सांस्कृतिक वाला राज्य रहा है। राजस्थान के मंदिरों की एक अलग विशेषता  और आकर्षण का केंद्र रहे है। राजस्थान के ज्यादातर मंदिर नागर शैली में निर्मित है।

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राजस्थान के मंदिरों की प्रमुख शैलिया

1. नागर शैली - उत्तर भारत 2. बेसर शैली - मध्य भारत 3. द्रविड़ शैली - दक्षिण भारत 

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नागर शैली

यह शैली उत्तर भारत में स्थित मंदिर में पाई जाती है। इस शैली में मंदिर उच्चे चबूतरे पर स्थित होते है। मंदिर के गर्भगृह में एक प्रमुख मूर्ति होती है और उस मूर्ति के चारों ओर परिक्रमा चक्र होता है।

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बेसर शैली

नागर शैली और द्रविड़ शैली का मिश्रण रूप बेसर शैली कहलाता है।

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द्रविड़ शैली

यह शैली मुख्यत दक्षिण भारत में होती है। इस शैली में मंदिर कई मंजिलों में बना होता है। इस मंदिर के अंदर कई छोटे छोटे मंदिर बने होते है। इसमें कई कक्ष बने होते है, जलकुंड बने होते है। ऊपर का भाग पिरामिडानुकार होता है। मंदिर के नीचे का आधार वर्गाकार , मध्य का भाग गुंबदाकार, प्रवेश कार विशाल होता है इसे गोपुरम कहते है।

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यह शैली राजस्थान के प्रमुख मंदिर में है जानिए वो कौनसे मंदिर हैं

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 शीतलेश्वर महादेव मंदिर (झालावाड़)

शीतलेश्वर महादेव का मंदिर राजस्थान में झालरापाटन (झालावाड़) जिले में स्थित है। यह राजस्थान का पहला तिथि अंकित मंदिर है। यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 689 ईस्वी में बना हुआ इस पर राजा का नाम मिट गया है।

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सहस्रबाहु का मंदिर उदयपुर नागदा में स्थित है। इस मंदिर को सास बहू का मंदिर है। यह भगवान विष्णु का मंदिर है। इसका निर्माण हिंदू शैली पर आधारित है। इसका निर्माण 10 वीं शताब्दी में गुहिल शासक ने करवाया था। 

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एकलिंग का मंदिर उदयपुर में कैलाशपुरी में स्थित है। मेवाड़ के महाराणा एकलिंग जी को अपना राजा मानते थे और खुद को उनका दीवान समझते थे। इस मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने 8 वीं शताब्दी में करवाया था। इसे लकुलिश संप्रदाय का मंदिर भी कहते है। यह राजस्थान में स्थित लकुलीश संप्रदाय का एकमात्र मंदिर है।

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बाड़ोली के शिव मंदिर चितौड़गढ़ जिले में स्थित है। यह जगह कोटा जिले के समीप स्थित है। इसका निर्माण हूण शासक मिहिरकुल ने 6 वीं शताब्दी में करवाया था। यह मंदिर नागर और पंचायतन शैली पर आधारित है।

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कंसुआ के शिव मंदिर कोटा जिले में स्थित है। इस मंदिर के पास में ही एक आठवी शताब्दी का कुटिल लिपि में लिखा हुआ शिलालेख है । यह शिलालेख शिवगण मौर्य का है।

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चारचौमा शिवालय  कोटा में गुप्तकालिन समय का प्राचीन शिवालय है। कोटा राज्य के इतिहासकार डॉ मथुरालाल शर्मा के अनुसार यह शिव मंदिर कोटा राज्य का सबसे पुराना देवालय है। मंदिर में चतुर्मुखी शिवालय है।

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