असुरों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा पर आ गया।
हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया।
मयासुर और हेमा की एक बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम मंदोदरी रखा गया।
एक बार मयासुर का देवताओं के राज इन्द्र के साथ विवाद हो गया और उसे मंडोर छोड़ कर भागना पड़ा।
उसके जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की। अप्सरा की बेटी होने के कारण मंदोदरी बहुत सुंदर थी।
ऐसी रूपवती कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था।
उस समय के सबसे बलशाली और पराक्रमी होने के साथ विद्वान राजा रावण था। फिर उन्होंने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा।
मंदोदरी को देखते ही रावण उस पर मोहित हो गया और शादी के लिए तैयार हो गया। रावण अपनी बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचा।
मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चंवरी (ऐसा स्थान जहां वर-वधू फेरे लेते है) कहते है। बाद में मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ की राजधानी बनाया और सदियों तक शासन किया।
वर्ष 1459 में राठौड़ राजवंश ने जोधपुर की स्थापना के बाद अपनी राजधानी को बदल दिया। आज भी मंडोर में विशाल गार्डन आकर्षण का केन्द्र है।
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