कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान के राजसमन्द ज़िले में स्थित एक दुर्ग है। निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था।
इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।
इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 13 मई 1459 वार शनिवार को कराया था। इस किले पर विजय प्राप्त करना दुष्कर कार्य था। इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो चीन की दीवार के बाद विश्व कि दूसरी सबसे बडी दीवार है। इस किले की दीवारे लगभग ३६ किमी लम्बी है और यह किला किला यूनेस्को की सूची में सम्मिलित है।
कुम्भलगढ किले को मेवाड की आँख कहते हैं। यह दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजय रहा। इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया।
इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे "कटारगढ़" के नाम से जाना जाता है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर है।
यहीं पर कुंवर पृथ्वीराज और राणा सांगा का बचपन बीता था। उड़ना राजकुमार कुंवर पृथ्वीराज की छतरी भी इस दुर्ग में देखी जाती है | महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था। हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे।
इस किले की ऊँचाई के संबंध में अबुल फजल ने लिखा है कि "यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की तरफ देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।" कर्नल जेम्स टॉड ने दुर्भेद्य स्वरूप की दृष्टि से चित्तौड़ के बाद इस दुर्ग को रखा है तथा इस दुर्ग की तुलना (सुदृढ़ प्राचीर, बुर्जों तथा कंगूरों के कारण) 'एट्रस्कन' से की है।
किले के उत्तर की तरफ का पैदल रास्ता 'टूट्या का होड़ा' तथा पूर्व की तरफ हाथी गुढ़ा की नाल में उतरने का रास्ता दाणीवहा' कहलाता है। किले के पश्चिम की तरफ का रास्ता 'हीराबारी' कहलाता है जिसमें थोड़ी ही दूर पर किले की तलहटी में महाराणा रायमल के 'कुँवर पृथ्वीराज की छतरी' बनी है, इसे 'उड़ना राजकुमार' के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीराज स्मारक पर लगे लेख में पृथ्वीराज के घोड़े का नाम 'साहण' दिया गया है।
किले में घुसने के लिए आरेठपोल, हल्लापोल, हनुमानपोल तथा विजयपाल आदि दरवाजे हैं। कुम्भलगढ़ के किले के भीतर एक लघु दुर्ग कटारगढ़' स्थित है जिसमें 'झाली रानी का मालिया' महल प्रमुख है। इस दुर्ग में मंदिर वास्तुकला और स्थापत्य कला दर्शनीय है। नीलकंठ महादेव मंदिर,चांमुडाली देवी का मंदिर प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक सुरक्षित और भव्य है।
कटारगढ़ लघुदुर्ग में उदयसिंह का पालन पोषण ओर राज्याभिषेक हुआ। कर्नल जेम्स टोड़ ने कुम्भलगढ़ दुर्ग को ऐट्रुक्शन की उपमा दी। इस दुर्ग मे क़रीब ६० से अधिक हिंदू ऐवम जैन मंदिर बने हुऐ हैं।