बयाना को 'वाणासुर की नगरी' के नाम से भी जाना जाता है। बयाना मुगल इतिहास में भी एक प्रसिद्ध शहर हुआ करता था।

जाटों द्वारा निर्मित बयाना का किला आज भी अपने आप में एक अलग किला माना जाता है।

यह किला एशिया के सबसे बड़े किलों में से था। उसके बाद  चित्तौड़गढ़ का दुर्ग बनने के बाद चित्तौड़गढ़ दुर्ग हो गया 

बयाना का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसे बाणासुर की नगरी कहा जाता है, क्योंकि बाणासुर की पुत्री ऊषा और भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र अनिरुद्ध का प्रेमाख्यान श्रीमद भागवत 10.62 और पुराणों में वर्णित है।

बयाना में ऊषा मंदिर इसका प्रमाण है। सन 322 में गुप्तवंश के जाट राजा चंद्रगुप्त का शासन था। उस समय बयाना क्षेत्र जिसे श्रीपथ कहा जाता था में पुष्प गुप्त को अपना गवर्नर नियुक्त किया था।

भीमलाटजिसे विजय स्तंभ भी कहा जाता है। इस स्तंभ पर मालवा संवत 428 अर्थात सन 371-72 उत्कीर्ण है।

यह स्तंभ लाल बलुए पत्थर से निर्मित एकाश्मक स्तंभ है। जो 13.6 फुट लंबे तथा 9.2 फुट चौड़े चबूतरे पर है। स्तंभ की लंबाई 26.3 फुट है। जिसमें प्रथम 22.7 फुट का भाग अष्टकोणीय है।