मेनार गांव की होली अपने आप में अनूठी है, क्योंकि यहां खेली जाने वाली होली रंग और फूलों की नहीं, बल्कि पटाखे और गोला-बारूद की होती है. 

स्थानीय लोगों के अनुसार आज से करीब 500 वर्ष पूर्व इस गांव के रणबांकुरों ने मुगलों की सेना को शिकस्त देने के उत्साह में इस अनूठी होली का आयोजन किया जाता है. 

इस दिन शाम ढलने के साथ ही गांव में होली की तैयारियां परवान चढ़ने लगती हैं. मेनार गांव में मेनारिया समाज के लोग अपने हाथों में गोला-बारूद के साथ होली खेलना शुरू कर देते हैं. 

इस दिन शाम ढलने के साथ ही गांव में होली की तैयारियां परवान चढ़ने लगती हैं. मेनार गांव में मेनारिया समाज के लोग अपने हाथों में गोला-बारूद के साथ होली खेलना शुरू कर देते हैं. 

इस गांव में पिछले 500 साल से इस परंपरा का निर्वहन बदस्तूर जारी है, जिसके पीछे कहानी है. मुगलों की सेना को इस इलाके के रणबांकुरों ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर शिकस्त दी थी. 

उसी खुशी में जमराबीज के दिन यहां की अनूठी होली मनाई जाती है.