रावतभाटा में स्थित बाड़ौली मंदिर पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.बाडोलिया में स्थित बाड़ौली मंदिर 9 मंदिरों का समूह है. जिसमें मुख्य मंदिर घाटेश्वर महादेव का है.
बाड़ौली मंदिर नवीं तथा दसवीं शताब्दी में शैव पूजा का एक केंद्र था, जहाँ शिव तथा शैव परिवार के अन्य देवताओं के मंदिर थे. बाडोली के 9 मंदिरों के समूह में घटेश्वर मंदिर में शिव के नटराज स्वरुप को विशद रुप से उत्कीर्ण किया गया.
इन मंदिरों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का कार्य जेम्स टॉड ने किया था. कहा जाता है कि औरंगजेब ने भारत पर हमला किया तब मंदिर की मूर्तियों को खंडित कर दिया. अभी भी मंदिर की शिल्पकला और नक्काशी आगंतुकों को खूब आकर्षित करती है.
राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक में शामिल बाड़ौली स्थित इस समूह में कुल नौ छोटे-बड़े मंदिर सम्मिलित है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण काल स्थापत्य शैली के आधार पर दसवीं ग्याहवीं शताब्दी आंका गया है.
इस मंदिर में शिव, विष्णु, गणेश, महिषासुरमर्दिनी तथा माता जी आदि को समर्पित है. इस समूह में सबसे विशाल मंदिर घटेश्वर महादेव का है, जिसका निर्माण दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हुआ.
इस मंदिर में एक गर्भगृह अंतराल और अर्द्धमण्डप की योजना है. जबकि शृंगारचौरी के नाम से प्रसिद्ध रंगमण्डप परवर्तीकालीन है. सम्भवतः इस मंदिर का नामकरण इसके गर्भगृह में स्थापित घट अथवा घड़े की आकृति के शिवलिंग के कारण किया गया
बाड़ौली मंदिर का निर्माण गुर्जर प्रतिहार सम्प्रदाय के समय हुआ था. वहीं स्टेट गवर्मेंट के पाठ्यक्रम में हूण शासक तोरमाण के पुत्र मेहरिकुल की ओर मंदिर का निर्माण करवाने का जिक्र मिलता है.
बड़ौली मंदिर स्थापत्यकला की दृस्टि से प्रसिद्ध है. यह मंदिर ब्रम्हाणी ओर चंबल नदियों के संगम पर इस मंदिरो का निर्माण करवाया गया है.
9 मंदिरों के समूह में तीन मंदिर मुख्य परिसर और 5 मंदिर परिसर के भीतर ही एक अलग अहाते में स्थित है. इसके अलावा करीबन 1 किलोमीटर की दुरी पर देवी का नौवा प्राचीन मंदिर स्थित है. इन मंदिरों में से चार मंदिर शिव को समर्पित है. इस में दो देवी दुर्गा को समर्पित है बाकि के मंदिर एक शिव त्रिमूर्ति , विष्णु, और भगवान गणेश को समर्पित है
मंदिर समूह के घाटेश्वर मंदिर, वामनवतार मंदिर, गणेश मंदिर, त्रिमूर्ति मंदिर, अष्टमाता मंदिर, शेषशयन मंदिर वास्तुकला और अलंकरण के अध्ययन करते हुवे इन मंदिरों का अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि इन मंदिरों को कुछ अलग-अलग तीन अवधियों में इसका निर्माण करवाया गया है