मारवाड़ का अमृत सरोवर कहलाता हैं।इसकी नींव 13 मई 1946 को जोधपुर महाराजा उम्मेद सिंह ने रखी।यह लूनी की सहायक नदी जवाई पर पाली में स्थित हैं।राजस्थाान के गठन के पश्चात् 1956 में यह बांध मुख्य अभियंता मोती सिंह की देखरेख में पूर्ण हुआ।सेई बांध, उदयपुर का प्रथम बार जल 9 अगस्त 1977 को जवाई बांध में डाला गया।जवाई बांध की जल क्षमता बढ़ाने के लिए 1971 में सेई बांध परियोजना बनाई गई।
भरतपुर की बयाना तहसील के बारेठा गांव में स्थित।कुकुन्द नदी पर 1897 में महाराजा रामसिंह के समय निर्माण।निर्माण कार्य 1866 में जसवंत सिंह के शासनकाल में पूर्ण।कमाण्डर इंजिनियर बहादुर राॅयल द्वारा प्रारंभ किया गया। इस बांध को वन्यजीव अभ्यारण्य के रूप में घोषित किया गया हैं। इस बांध की बनावट एक जहाज के जैसी है अतः यह दूर से जहाज के समान दिखाई देता हैं।
1960 में चम्बल नदी पर एम.पी. के मंदसौर जिले की भानपुरा तहसील में निर्माण। यह 510 मीटर लम्बा व 62 मीटर चैड़ा हैं।इस बांध पर विधुत ग्रह का निर्माण किया गया हैं।
इसका निर्माण द्वितीय चरण में चितौड़गढ़ जिले के रावतभाटा नामक स्थान पर किया गया हैं। इसका निर्माण कार्य 1970 में पूर्ण हुआ। इसकी लम्बाई 1170 मीटर व चैड़ाई 36 मीटर हैं। इस बांध पर कनाड़ा की सहायता से परमाणु बिजली घर की स्थापना की गई। विश्व का सबसे सस्ता बांध जिसका निर्माण 31 करोड़ में किया गया। इसकी जल भण्डारण क्षमता सर्वाधिक हैं।
1962 से 1973 के मध्य कोटा के बोरावास नामक स्थान पर निर्माण किया गया। कोटा व बूंदी को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती हैं। इसका निर्माण विधुत उत्पादन के लिए किया गया हैं। यह एक पिकअप बांध हैं।
इसका निर्माण 1953 में शुरू व 1960 में पूर्ण हुआ।बांध के दांयी व बांयी ओर नहरों का निर्माण किया गया। बांयी नहर राजस्थान में सिंचाई के काम आती हैं।इसकी कुल लम्बाई 178 कि.मी. हैं। चम्बल कमाण्ड क्षेत्र में राजस्थान कृषि डेªनेज अनुसंधान परियोजना, कनाडा की अन्तर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी के सहयोग से चलाई जा रही हैं।
टोरड़ी गांव, टोंक में 1887 में निर्माण किया गया।इसकी प्रमुख विशेषता है कि इसकी सभी मोरिया खोल देने पर एक बूंद पानी भी नहीं रूकता हैं।
इसका निर्माण प्रतापगढ़ जिले के अनुपपुरा के पास जाखम नदी पर 81 मीटर ऊंचाई पर किया गया हैं इसका निर्माण टी.एस.पी. जनजाति उपयोजयना के अंतर्गत किया गया हैं। जाखम नदी के उपर एक विद्युत ग्रह का निर्माण किया गया हैं।
टोंक जिले में टोडारायसिंह से 13 कि.मी. दुर बीसलपुर गांव में बनास व डाई नदी के संगम पर 1987 में निर्माण। इसका मुख्य उद्देश्य टोंक, बूंदी व अजमेर जिले को पेयजल उपलब्ध करवाना था। एशिया विकास बेंक की सहायता से आर.वी.आई.डी.पी. द्वारा परियोजना के ट्रासमिशन का कार्य प्रारम्भ किया गया। यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना हैं। बीसलपुर परियोजना के लिए नाबार्ड के ग्रामिण आधार ढ़ांचा विकास कोष से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती हैं।
माण्डलगढ़ कस्बे, भीलवाड़ा मे कोठारी नदी पर स्थित हैं। इस बांध पर बनाये गये मेजा पार्क को ग्रीन माण्ऊट के नाम से जाना जाता हैं।
करौली के गुड़ला गांव के पास पांच नदीयों(भद्रावती, अटा, माची, बरखेड़ा, भैसावर)के संगम पर मिट्टी से बना बांध राजस्थान में मिट्टी से बना यह सबसे बड़ा बांध हैं। इस बांध का निर्माण अमेरिका के आर्थिक सहयोग से किया गया हैं। पांचना बांध परियोजना यू.एस.ए. के सहयोग से चलाई जा रही हैं।
यह औराई नदी पर चितौड़गढ में स्थित हैं। इसका उद्देश्य चितौड़गढ़ को पेयजल उपलब्ध करवाना हैं।
जालौर में सूकड़ी तथा कुलथाना नदीयों के किनारे बांकली गांव में स्थित हैं।
यह भीलवाड़ा में मानसी नदी पर स्थित हैं।
यह अजमेर जिले के ब्यावर के पास खारी नदी पर स्थित हैं। इसे अजमेर जिले का समुन्द्र कहा जाता हैं।
नागौर की डेगाना तहसील मे 1959 में निर्माण। इस बांध से लूणियास व हरसौर नहर विकसीत की गई।
भरतपुर में सूरजमल जाट द्वारा निर्माण करवाया गया। इसका निर्माण बांणगंगा व गंभीरी नदी के पानी को भरतपुर में नहीं आने देने के लिए किया गया।
इस बांध का निर्माण रूपारेल नदी पर सूरजमल जाट द्वारा किया गया हैं। इसे भरतपुर की लाईफ लाईन कहा जाता हैं। इस बांध के द्वारा रूपारेल व बांणगंगा का पानी यू.पी. की ओर निकाला जाता हैं।
इसे राजसमंद की जीवन रेखा कहा जाता हैं। इस बांध का निर्माण नाथद्वारा (राजसमंद) में बनास नदी के तट पर 1955 में करवाया गया।
यह बांध भरतपुर मे स्थित हैं। इस बांध द्वारा नगर, कामा, डीग तहसील के अनेक बांधो को भरा जाता है। यह बांध रूपारेल नदी पर स्थित हैं।
यह भरतपुर में स्थित हैं। इस बांध को बाणगंगा नदी द्वारा भरा जाता हैै।
यह भरतपुर में स्थित हैं। इस बांध को बाणगंगा नदी द्वारा भरा जाता हैै।
यह बांध खेतड़ी (झुझुनूं) में स्थित हैं।
यह बांध खेतड़ी (झुझुनूं) में स्थित हैं।