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    राजस्थान का ऐसा किला जिसमें आत्मा पीती है हुक्का, पक्षी करते हैं इंसानों की तरह बात।

    Gagron Fort / haunted fort

    gagron for

    सबसे प्राचीन व विकट दुर्गों में से एक गागरोन दुर्ग हैं प्रमुख जल दुर्ग है ! जिसे झालावाड़ में आहू और कालीसिंध नदियों के संगम स्थल ‘सामेलजी’ के निकट डोड (परमार ) राजपूतों द्वारा निर्मित्त करवाया गया था ! इन्हीं के नाम पर इसे डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहते थे !

    21 जून, 2013 को राजस्थान के 5 दुर्गों को युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया जिसमें से गागरों दुर्ग भी एक है। यह झालावाड़ से 13 किमी की दूरी पर स्थित है।

    के प्रवेश द्वार के निकट ही ख्वाजा हमीनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। यह दुर्ग दो तरफ से नदी से, एक तरफ से खाई से और एक तरफ से पहाड़ी से घिरा हुआ है। कभी इस किले 92 मंदिर होते थे और सौ साल का पंचांग भी यहीं बना था। इस किले को आज भी haunted fort माना जाता है।

    यह तीन ओर से अहू और काली सिंध के पानी से घिरा हुआ है। पानी और जंगलों से सुरक्षित यह किला कुछ ही ऐतिहासिक स्थलों में से एक है जिसमें ‘वन’ और ‘जल’ दुर्ग दोनों हैं। किले के बाहर यात्री सूफी संत मिट्ठे शाह की दरगाह देख सकते हैं।

    प्रत्येक वर्ष मोहर्रम के अवसर पर यहाँ एक मेला आयोजित किया जाता है। संत पीपा जी का मठ भी, जो संत कबीर के समकालीन के रूप में प्रसिद्ध है, किले के पास स्थित है।

    दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। डोड राजा बीजलदेव ने 12वीं सदी में निर्माण कार्य करवाया था और 300 साल तक यहां खिंची राजपूतों ने राज किया।

    सीधी खड़ी चट्टानों पर ये किला आज भी बिना नींव के सधा हुआ खड़ा है। किले में तीन परकोटे है जबकि राजस्थान के अन्य किलो में दो ही परकोटे होते हैं।

    तेरहवी शताब्दी में अल्लाउदीन खिलजी ने किले पर चढ़ाई की जिसे राजा जैतसिंह खिंची ने विफल कर दिया था। 1338 ई से 1368 तक राजा प्रताप राव ने गागरों पर राज किया और इसे एक समर्ध रियासत बना दिया।

    चौदहवी सदी के मध्य तक गागरों किला एक समर्ध रियासत बन बन चुका था। इसी कारन मालवा के मुस्लिम घुसपैठिये शासको की नजर इस पर पड़ी। होशंग शाह ने 1423 ईस्वी में तीस हजार की सेना और कई अन्य अमीर राजाओ को साथ मिलाकर गढ़ को घेर लिया और अपने इसे जीत लिया।

    दुर्ग के बारे में अंदर की कुछ जानकारी (haunted fort)

    gagron-fort haunted

    वह के लोकल लोगो का मान ना है की हर रात राजा अचलदास आज भी अपना पलग पर सोते है तथा हुक्का पीते है। इस लिए इसे haunted fort भी बोलते है। इस दुर्ग मैं कई सारी पोल  है जैसे – सूरज पोल , भैरव पोल , गणेश पोल थता एक बोहोत बड़ा जोहर कुंड है। राजा अचलदस के और उनके बोहोत बड़े कमरे अभी भी अच्छी स्थिति है।

    जोहर प्रथा के चलते भी इस जगह को haunted fort काह जाता है।

    इस के आलावा बारूद खाना , तकशाल, मधुसूदन मंदिर और शीतला माता के मंदिर है।

    मैं खिंची राजपूतों के पराक्रम का प्रतीक रहा हूं। शीश महल, जनाना महल, मरदाना महल की शिल्प करि अपने आप मै अनोखी है। अचलदास खींची गागरोन दुर्ग के पराक्रमी शाशक थे।

    इस दुर्ग का निर्माण किस तरह से किया गया है इसकी जानकारी

    gagron-haunted fort

    इस दुर्ग के निर्माण कुछ इस तरह से किया गया थे की कोई भी इस दुर्ग को दूर से ना देख पाए और सातिक अंदाज ना लगा पाए और यही वजह है की दुसमन दुर्ग की सिचुवेशन का अंदाजा नहीं लगापा रहा थे। इस फोर्ट मैं कई युध होने के कारन कई लोगो की मोत हुई है इस लिए ये दुर्ग को haunted fort भी बोल ते है।इस दुर्ग का निर्माण करने के लिए बड़ी बड़ी शिलाओं का इस्तेमाल किया गया था।

    इस दुर्ग के अंदर घुमाव गार प्रवेश दवार भी है , इस वजह से किसी भी दुसमन के लिए इस किले को भेद ना कठिन होता था।  इसके मुख्य द्वार पर लकड़ी का उठने वाला पुल्ल भी था। (haunted fort) इस किले का निर्माण समय समय पर अलग अलग राजा के द्वारा करवा या गया था। इस किले मैं गुने का टिकट ५० रुपय है। यहाँ पर आने के लिए आप को कोटा से होकर आना होगा। 

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