पुष्कर में बहोत ज्यादा मंदिर है। आपको यहां पर घूमने में 1 दिन पूरा भी लग सकता है। यहां पर देश और विदेश से लोग घूमने के लिए आते हैं। पुष्कर ब्रह्मा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि इकलौता ब्रह्मा मंदिर पुष्कर में स्थित है।
पुष्कर झील बहुत बड़ी क्षेत्र में फैली हुई है। पुष्कर झील के चारों तरफ प्राचीन मंदिर देखने के लिए मिलते हैं। पुष्कर झील में बहुत सारे घाट बने हुए हैं। इन घाटों में आप स्नान कर सकते हैं। कहा जाता है कि पुष्कर झील का पानी अमृत के समान रहता है। इससे सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं।
ब्रह्मा जी का मंदिर आपको कहीं भी देखने के लिए नहीं मिलता है, क्योंकि ब्रह्मा जी को श्राप मिला है। इसलिए पुष्कर में ही ब्रह्मा जी का मंदिर हैं। यहां पर पुष्कर झील में स्नान करके ब्रह्मा जी के दर्शन किए जाते हैं। ब्रह्मा जी के मंदिर में आपको ब्रह्मा जी की बहुत ही आकर्षक प्रतिमा देखने के लिए मिलती हैं। यह मंदिर लाल रंग का है।
सावित्री माता ब्रह्मा जी की पत्नी है। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियों मिल जाती हैं। आप यहां पर रोपवे से भी जा सकते हैं।
गायत्री माता ब्रह्मा जी की दूसरी पत्नी थी। यह मंदिर भी एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर में जाने के लिए सीढ़ियां हैं। इस मंदिर में जाकर आप गायत्री माता के दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर में गायत्री माता की बहुत ही सुंदर प्रतिमा देखने के लिए मिलती है।
यहां पर विष्णु भगवान जी को समर्पित है। यहां पर विष्णु भगवान जी रंगनाथस्वामी के नाम से पूजा जाता है। यह मंदिर बहुत पुराना है। इस मंदिर का निर्माण 1823 में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण सेठ पूरणमल नाम से एक व्यापारी ने किया था
मंदिर में भी विष्णु भगवान जी को रंगनाथस्वामी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर भी दक्षिण भारतीय स्टाइल में बना हुआ है। इस मंदिर में आपको बहुत सुंदर सुंदर तस्वीरें देखने के लिए मिलती हैं, जिसमें विष्णु भगवान की लीलाओं को दिखाया गया है।
मंदिर में गायत्री माता की बहुत ही सुंदर प्रतिमा देखने के लिए मिलती है। यह मंदिर पुष्कर शहर में मुख्य सड़क पर स्थित है। आप पुष्कर में एंट्री करते है , तो आपको यह मंदिर देखने के लिए मिलता है। यह मंदिर 1 शक्तिपीठ है
यह मंदिर विष्णु भगवान जी के वराह अवतार को समर्पित है। इस मंदिर में आपको वराह अवतार देखने के लिए मिलती है। यह मंदिर बहुत पुराना है। यह मंदिर 10 वीं शताब्दी में बना हुआ है। यह मंदिर एक किले के आकार में बना हुआ है। मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट करने का बहुत प्रयास किया, मगर यह मंदिर नष्ट नहीं हो पाया।
अज्ञातवास के दौरान पांडव ने यहां पर निवास किया था। आपको यहां पर उनके नाम के 5 कुंड देखने के लिए मिल जाते हैं। नाग कुंड युधिष्ठिर जी के नाम से है। सूर्य कुंड भीम जी के नाम से है। गंगा कुंड अर्जुन के नाम से है। पदम कुंड नकुल के नाम से है और चक्र कुंड सहदेव के नाम से है।