उदयपुर शहर से 65 किलोमीटर दूर कुराबड़-बम्बोरा मार्ग पर श्री शक्ति पीठ ईडाणा माता का प्राचीन मंदिर है
इस मंदिर में महीने में दो से तीन बार अपने आप आग लग जाती है और इस मंदिर की मूर्ति का सारा श्रृंगार जलकर राख हो जाता है।
इसमें जलने वाली आग की लपटें दस से बीस फीट तक जाती हैं। अभी तक आग लगने के कारणों का कोई पता नहीं चल सका है.
ऐसा माना जाता है कि माता पर अधिक भार पड़ने से अग्नि अपने आप भड़क उठती है।
इसमें आश्चर्य की बात यह है कि मां के श्रृंगार को छोड़कर आग से आज तक किसी अन्य चीज को कोई नुकसान नहीं हुआ है. ये तो बस देवी मां की लीला है
मंदिर से जुड़े कर्मचारियों का कहना है कि मंदिर पूरा खुला हुआ है और माताजी विराजमान है. मान्यता है कि सदियों पहले पांडव यहाँ से गुजरे थे जिन्होंने भी माता की पूजा अर्चना की थी.
सबसे बड़ी मीठे पानी की जयसमंद झील के निर्माण के समय राजा जयसिंह भी यहां आए थे और देवी शक्ति की पूजा की थी. मंदिर के कर्मचारी दशरथ दमामी बताते हैं
ईडाणा माता की प्रतिमा के समक्ष अगरबत्ती नहीं चढ़ाई जाती है क्योंकि लोगों को यह भ्रम ना हो कि अगरबत्ती की चिंगारी से आग लगी. एक अखंड ज्योत जरूर जलती है लेकिन वह भी कांच के अंदर रखी रहती है.
चढ़ावें का भार ज्यादा होने और माँ के प्रसन्न होने पर अग्नि स्नान कर उतारती है.
हल्की-हल्की आग लगना शुरू होती है उसी समय पुजारी माताजी के आभूषण उतार लेते हैं. अग्नि ठंडी होती है तो फिर श्रृंगार किया जाता है. मंदिर में भक्तों की यह मान्यता भी है कि यह लकवा ग्रस्त रोगी बिल्कुल ठीक होकर जाते हैं
ईडाणा माता मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष कमलेन्द्र सिंह ने बताया कि माताजी के अग्नि स्नान का कोई तस समय नहीं है. कभी माह में दो बार तो साल में 3-4 बार ही होता है. साथ ही कोई वैज्ञानिक कारण अब तक नहीं आया, माता की महिमा है. जब मां प्रसन्न होती है तो अग्नि स्नान करती है.